Sunday, March 15, 2009

VIRAAM : Poet Mahendra Bhatnagar

विराम / महेंद्रभटनागर

[1]अप्रभावित
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माना पिया ज़िंदगी-भर ज़हर-ही-ज़हर
बरसा किये आसमां पर क़हर-ही-क़हर
लेकिन उलट-फेर ऐसा समय का रहा
ज़ुल्मों-सितम का हुआ हर असर, बेअसर!
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[2]सक्रिय
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किस क़दर भागे अकेले ज़िंदगी की दौड़ में,
रक्त- रंजित; किंतु भारी जय मिली हर होड़ में,
हो निडर कूदे भयानक काल-कर्मा- क्रोड़ में
और ही आनंद है ख़तरों भरे गँठ-जोड़ में !
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[3] सौन्दर्य
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सुन्दरता क्या है?
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जो मन को भाये / अतिशय भाये,
मन जिसको पाने ललचाये,
हो विस्मय-विमुग्ध
स्वेच्छिक बंधन में बँध जाये!
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होंठों पर गान उतर आये,
जीवन जीने योग्य नज़र आये,
जो मानव को
अति मानव का उच्च धरातल दे,
आत्मा को उज्ज्वल शतदल दे!
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[4] प्रेय
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शीर्ष मूल्य है :
परोपकार,
स्वार्थ-मुक्त
निर्विकार ।
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लक्ष्य है महान् —
लोक-हित,
साधना सफल वही
रहे हृदय व बुद्धि
संतुलित!
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[5] अंतर
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बचपन में हर बारिश में
कूद-कूद कर
कैसा अलमस्त नहाया हूँ!
चिल्ला-चिल्ला कर
कितने-कितने गीतों के
मुखड़े गाया हूँ!
जीवित है वह सब
स्मरण-शक्ति में मेरी ।
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ज्यों-ज्यों बढ़ती उम्र गयी
बारिश से घटता गया लगाव,
न वैसा उत्साह रहा / न वैसा चाव,
तटस्थ रहा, / निर्लिप्त रहा!
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अति वर्षा से कुछ आशंकित —
ढह जाए न टपकता घर मेरा,
दूर बसा मज़दूरों का डेरा,
बह जाए न कहीं
निर्धन मानवता का जीर्ण बसेरा!

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[6] असामाजिक परिवेश
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आओ, आज अकेले होली खेलें!
आस-पास / दूर-दूर तक
बसे अपरिचित हैं,
अपने-अपने में सीमित हैं,
आपस में अनिमंत्रित हैं
मात्र अवांछित हैं,
आओ, आँगन में एकाकी
ख़ुद अपने ऊपर रंग उड़ेलें!
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[7] दीप-पर्व
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ओ आद्याशक्ति
महालक्ष्मी!
आओ
सर्व-हित प्रेरक बन
मन पर छाओ!
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जन-जन का अन्तर
आत्मीय भाव से
परिपूरित हो,
वसुधा का कण-कण
शीतल प्रकाश से
ज्योतित हो!
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सर्वत्र आर्द्र स्नेह भरो!
कृतकृत्य करो!
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रात अमावस्या की
प्रज्वलित दीपों से
जगमग हो,
अंधकार
एकांत स्वार्थ का
डगमग हो!
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हम मिलें
परस्पर
नाचे-गाएँ
नाना वाद्य बजाएँ
हर्ष मनाएँ!
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[8] महालक्ष्मी से —
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गरुड़-वाहिनी!
हो,
श्री बन,
घर-घर में
प्रवेश!
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दूर करो
जन-जन का
क्लेश-द्वेष!
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शक्ति-समन्वित हो
हर मानव,
तन-मन से
सेवा-रत हो
सम्पूर्ण प्राणि-भव!
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निष्क्रिय पाये
तीव्रवेग
पक्षिराज सबल गरुड़ का,
हो
गति में परिवर्तन
निश्चेष्ट अचेतन जड़ का!
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स्वागत है!
जीवन उपकृत है!
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[9] आतंक-मोचन : नव-वर्ष : 2009
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नूतन वर्ष आया है!
अमन का, चैन का उपहार लाया है!
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आतंक के माहौल से अब मु‌‌‍क्‍त होंगे हम,
ऐसा घना अब और छाएगा नहीं भ्रम-तम,
नूतन वर्ष आया है!
मधुर बंधुत्व का विस्तार लाया है!
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सौगन्ध है — जन-जन सदा जाग्रत रहेगा अब,
संकल्प है — रक्षित सदा भारत रहेगा अव,
नूतन वर्ष आया है!
सुरक्षा का सुदृढ़ आधार लाया है!


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